तेरा होना तब पास मेरे
तेरा होना तब पास मेरे
तब सब कुछ था वो साथ मेरे
ये दिल भी तब तुम थे उसकी जान भी तुम
मेरी होने के पहचान थे तुम
मेरा आईना मेरी सिरत थे तुम
जिंदगी की गुफ्तगू की जरूरत थे तुम
देखती थी तुम्हें बस उस आईने में
इस हुस्न को संवारने की जरूरत थे तुम
हर अंगड़ाई पे सिलवटें तुम्हारी ही थी
साँसों में सरगम कि रुबाई तुम्हारी ही थी
क़ाफ़िया मेरा अब यूँ अधूरा रह गया
मुक्तक मेरा मुझे जब अकेला कर गया
अब प्यास है और प्यासी हूँ मैं
प्यासे समंदर की बस एक दासी हूँ मैं
लहरों की तरह फिरती रहती हूँ इधर उधर
किनारा मेरा तू जब गया हो बिछड़
तेरा होना तब पास मेरे .....
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी


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