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बंद तालों की आवाज



बंद तालों की आवाज

बंद तालों की आवाज
गूँजने लगी है मेरे पहाड़ों में आज
हर घर हर गलियारों में
बंद तालों की आवाज

बंद होने लगी है
बंद कर के वो अपनी आवाज आज
खेत और खलिहानों की
बंद तालों की आवाज

बंद बंद सा दिखने लगा है
बंद वो मेरा पुरखों का सुनहरा ताज आज
चाबी के उन कारखानों में
बंद तालों की आवाज

बंद अब सब होता जा रहा है
बंद सब रीति रिवाज कारोबार आज
करने बैठा वो किस का इंतजार
बंद तालों की आवाज

बंद हिर्दय से ना हो जाये वो
बंद अब मेरे पहाड़ों की मीठी आवाज आज
पुकारा लो ना फिर एक बार मुझे
बंद तालों की आवाज

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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