अब तो अफसानों में
अब तो अफसानों में ही तुम्हें याद आयेंगे हम
कभी तुम्हें गुदगुदायेंगे कभी रुलायेंगे हम
और तड़पायेगी हमें अब तो आप की सदा
फना होने के बाद भी हमें मिली रही है ये कैसी सजा
ऐसी कैसी खता तुम से देखो की थी हमने
रोते रोते लिपट जाने की अदा जो ना सीखी हमने
इसका ग़िला देखो हमे अब तक बहुत है
पास हैं तुम से कितने पर हम अब कितने दूर हैं
राख ठंडी हो गयी है अब अभी आग बहुत है
कहना रह गया तुम से की तुम से मुझे प्यार बहुत है
फिर मौका मिले ना मिले जी भर के जी जाऊं आज
फिर ना जाने अब बिछड़े कब होगी तुम से मुलकात
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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