बस हारा हुआ मैं
बस अपने में ही रहा,अपनों से ही किनारा करके
बस चुनता रहा फूलों को ,काँटों से ही किनारा करके
बस बुनता रहा ख्यालों को,सपनों से ही किनारा करके
बस बहारों को देखता रहा ,खिजां से ही किनारा करके
बस खाली पन्नों को देखता रहा ,रंगो से ही किनारा करके
बस शब्दों को पढता रहा ,भावों से ही किनारा करके
बस रोता रहा , उन आँखों से ही किनारा करके
बस भागता रहा सुख के लिये ,दुःख से ही किनारा करके
बस शिकायतें की , जवाबों से किनारा करके
बस हारा हुआ मैं ,अपनी जीत से ही किनारा करके
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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