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अब लौटने का वक्त आ गया है


अब लौटने का वक्त आ गया है

जरा ठहरो रुको
अब सोचने का वक्त आ गया है
मीलों तक चलते चलते चले अकेले हम
अब ठहरने का वक्त आ गया है

खाली हो रहे उस रिक्त को
अब भरने का वक्त आ गया है
कितना दोष दो गे तुम ज़माने को
अब सफाई देने का वक्त आ गया है

कितना छिपे रहोगे खुद की आड़ में
अब पर्दाफाश होने का वक्त आ गया है
आँखें क्यों झुकी है अब हमारी
अब आँखों को मिलाने का वक्त आ गया है

बैठ दो घडी अब अपनों के साथ
कुछ कर गुजरने का वक्त आ गया है
भीड़ से अकेले निकल के आ जा
अब अपनों से मिलने का वक्त आ गया है

देख खड़ा है अब भी वो शीश उठा कर
अब गले मिलने का वक्त आ गया है
झुक के आ जा अब तो अपने घर को
अब लौटने का वक्त आ गया है

जरा ठहरो रुको
अब सोचने का वक्त आ गया है

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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