ADD

अपना हूँ मैं




अपना हूँ मैं

कच्चे थे पर कितने सच्चे थे
वो मिटटी के घरोंदे कितने अच्छे थे

सदा अपना मिल जाता था वंहा
क्या हसीन था वो छूटा मेरा जँहा

खिलती रहती थी वंहा हंसी मेरी
बिखरी मिलती थी मुझे खुशी मेरी

वो बचपन मुझे बहुत याद आता है
उसके और करीब वो मुझे ले जाता है

सपनों में ही अब वो रोज मिलता है
भूल ना जाना अपना हूँ मैं ये कहता है

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ