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चुपके चुपके ये ज़िन्दगी



चुपके चुपके ये ज़िन्दगी

चुपके चुपके ये ज़िन्दगी
आती है और जाती है
मीठी मीठी बातें कर के
ये दिल में उतर जाती  है
चुपके चुपके ये ज़िन्दगी .....

बच के रहना यारों इस से
ये यूँ ही घुलमिल जाती है
आशिक बनकर अपना वो
कभी जलाती कभी तड़पती है
चुपके चुपके ये ज़िन्दगी.....

भूलना चाहो इस को तो
ये यूँ ही बार बार याद आती है
दिल की गहराई में बसी है
ये आँखों को रोज यूँ रुला जाती है
चुपके चुपके ये ज़िन्दगी .....

ढूढ़ने चले  इसको तो
ये खुद पता पूछ आ जाती है
तलाश खत्म होने पर भी
ये किसी को भी समझ  ना आती है
चुपके चुपके ये ज़िन्दगी .....

हम से शुरू होकर ये
हम पर ही ये ख़त्म  हो जाती है
दो पन्नो में सिमटी इसकी कहानी
फिर भी अनजानी रह जाती है
चुपके चुपके ये ज़िन्दगी .....

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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