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देखकर सुनसान आज मेरे इन गाँव की गलियों को



देखकर सुनसान आज मेरे इन गाँव की गलियों को

देखकर सुनसान आज मेरे इन गाँव की गलियों को
दिल मेरा देखो क्यों आज भर आया
शोर मचाते मस्ती करते थे हम जब इन गालियों में
वो मंजर आँखों के सामने मेरे एकाएक  फिर छा गया
देखकर सुनसान आज मेरे इन गाँव की गलियों को   ...

मौसम ने  देखो कैसी बदली आज करवट है
उसका वो छुटा दामन फिर देखो मेरे हाथ आ गया  
वँहा की हर एक चुप चीज आज फिर एकाएक बोल पड़ी
देखो मेरे हिस्से में पहले क्या था अब क्या आ गया
देखकर सुनसान आज मेरे इन गाँव की गलियों को   ...

आंखें खोजती हैं क्यों कर आज उन सब फिर अपनों को
क्यों वो खोया सूरज मेरा नाम पूछ कर मेरे पास आज आ गया
चाँद की वो लोरियां भी आज क्यों वो गुमसुम सी बैठी अकेली है
कहाँ से  इतना दर्द आया और आके वो मुझको रुला गया
देखकर सुनसान आज मेरे इन गाँव की गलियों को   ...

ढोल नगाड़े बिना गाँव की वो सब रौनक फीकी सी है
बिना तेरे बिना मेरे इसकी सब रंगत सब अब फीकी सी है
गांव के संस्कार वो चौपाल चर्चा सब अब अधूरी अधूरी सी है
जब एक के पीछे एक अपना छोड़कर इससे दूर चला गया
देखकर सुनसान आज मेरे इन गाँव की गलियों को   ...

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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