ठोकर ना लगा पत्थर नही मैं
ठोकर ना लगा पत्थर नही मैं
हैरत ना कर मंज़र नही मैं
नजरों में तेरी अब भी कुछ भी नही मैं
ठोकर ना लगा पत्थर नही मैं
अपनी कदर में कुछ भी नही मैं
हासिल हैं जिन्हें उन में कहीं नही मैं
आँखों के आँसूं बस उस में ही बसी मैं
ठोकर ना लगा पत्थर नही मैं
मन बेकल है क्यों ये मेरा नही है
आज और कल भी वो मेरा नही
फर्क तब भी था फर्क वो अब भी है मेरा
ठोकर ना लगा पत्थर नही मैं
बंद बंद ही रही खुल ना सकी कभी मैं
खुले में भी बस बंद बंद ही रही मैं
हासिल है मुझे सब हाथ में कुछ भी नहीं मैं
ठोकर ना लगा पत्थर नही मैं
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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