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कविता अंतर्मन की


कविता अंतर्मन की

कविता अंतर्मन की
मेरे आलिंगन मन की
कैसे कहूँ तुम्हे प्रिये
भेदन करूँ अपना जिये की
कविता अंतर्मन की .......

किरणों में छानकर तू आती है
कोपलों में तू ओस सी सुहाती
फैलाकर ये अंबर ये धरती प्रिये
तू ओढ़ मुझ में छुप जाती है
कविता अंतर्मन की .......

बीच हमारे देखो फैला है
वो इश्क मेरा पहला पहला है
तुझे पास आने मैं देता हूँ
कैसे व्यक्त करूँ प्रेम ये दिल कहता है
कविता अंतर्मन की .......

बारिश में तप तो जाती है
हरी हरी घास खिल खिलाती
गर्मी सा भीग सा मैं जाता हूँ
कुम्हला कर सिमट मैं जाता हूँ
कविता अंतर्मन की .......

कितने जतन मैं करता हूँ
कैसे कहूँ प्रेम तुम से ही करता हूँ
भाव व्यक्त मेरे पास तेरे नहीं होते हैं
इसलिए आँखों से ही कहता हूँ

कविता अंतर्मन की
मेरे आलिंगन मन की
कैसे कहूँ तुम्हे प्रिये
भेदन करूँ अपना जिये की
कविता अंतर्मन की .......

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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