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मेरे पहाड़ पे ले जाने के लिये



मेरे पहाड़ पे ले जाने के लिये

जंहा भी जाएंगे हम ,वो पीछे पीछे आएंगे
हमारी स्मृतियों में ,वो हरदम आ कर गुनगुनायेंगे

उसकी कोख से फूटेंगे अब अनगिनत प्यासे झरने
अब हमें वो और भी प्यासा बनाएंगे
हर एक बूंद किरणों में जब झिलमिला जायेगी
हमे वो अपने पहाड़ों के दिन फिर याद आएंगे

आकाश के अनंत की ओर वो तनी होगी
वो चोटीयां बदस्तूर मेरे इन्तजार में खड़ी होंगी
हवाएँ होंगी उन्हें पल पल मेरी याद दिलाने के लिए
मेरे सांसों से नियमित आने जाने के लिए

निरभ्र वो चट्टानें अब भी बिखरी पड़ी होंगी
अंकित होंगे उनमें अदृश्य पदचिह्न अब भी मेरे
व्याकुल करते रहेंगे वो अब तो सदा मुझे यूँ ही
वो मेरे पैर अब मुझे रोज मेरे पहाड़ पे ले जाने के लिये

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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