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वो तड़पती बंदूक


वो तड़पती बंदूक

वो तड़पती बंदूक
वो फड़फड़ाती गोली
रह गयी
बस वो अपने में खोयी
अपनों के लिए
अब वो नींद में सोयी
वो तड़पती बंदूक

बंधी रह गयी वो जंजीर
गर्म लहू की जो थी लकीर
बम के वो गोले
फूटते उड़ते वो शोले
धुंआ वो काला
वो काली रात और
वो तड़पती बंदूक

फिर कोई उसे उठ लेगा
उसकी जगह कोई और लेगा
वो स्थान रिक्त कैसे रहेगा
मर मिटने करोड़ों कदम
देख उस ओर चलेगा
वो तीन रंग ऐसे ही पलेगा
वो देश भक्ति और
वो तड़पती बंदूक

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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