शब्दों का ऐ खेल है सारा
शब्दों का ऐ खेल है सारा
जीवन का छिपा इनमें भेद है सारा
हर एक यंहा पे इसका मारा
बिखरा पड़ा है इनमें किस्सा सारा
शब्दों का ऐ खेल है सारा ......
जोड़ी हुयी हैं सब कड़ियाँ कड़ियाँ
लडी हुयी हैं सब लडियाँ लडियाँ
उलझी हुयी है उलझन उस में
जैसे फंसी हुयी हो कोई दुल्हन उस में
शब्दों का ऐ खेल है सारा ......
साँसे भी हैं देखो इन से हारी
बातों पर भी देखो ये पड़ गयी भारी
बदल जाती है कैसे पल में देखो
जो अभी अभी तक थी वो सखी तुम्हारी
शब्दों का ऐ खेल है सारा ......
धड़कन धड़कन धड़कती है वो
हर पल नये रंग रूप में उतरती है वो
लहू के जैसे बहती है इसकी रवानी
सदा जवान है इसकी जवानी
शब्दों का ऐ खेल है सारा ......
मर के भी अमर वो हो जाती
जो कलम लिखते लिखते है रुक जाती
कोई ना कोई उसे फिर थाम लेता है
फिर उन शब्दों में वो जी लेता है
शब्दों का ऐ खेल है सारा ......
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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