ADD

तो अच्छा है


तो अच्छा है

रिश्ते दूर दूर होते हैं
तो अच्छा है
पास आने से अब ये दिल
क्यों डरता है
ख़ुशी में भी
ये आंखें छलकती हैं
गम में क्यों वो
अकेले अकेले लुढ़कती हैं
कोई लुढ़क कर देखो
अभी अभी वो दूर गया
पास था वो
अभी होके मजबूर गया
कोई तो सीने में
अब भी धड़कता है
खड़ा अकेले अकेले
दूर से ही अब वो तकता है
जुबां चुप है
आँखें बस अब बोलती है
रातों के अंधेरों से
अब वो चुपचाप झगड़ती हैं

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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