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बंद बोतल की वो शीशी


बंद बोतल की वो शीशी

बंद बोतल की वो शीशी
(रंग था गुलाब सा) ...... २
खाना खराब कर गयी वो
मेरे सारे घर के हिसाब का
बंद बोतल की वो शीशी ......

पहले लूट उसने मुझको
(दे के झांसा वो प्यार का ) ...... २
अब उसके गिरफत में फंसा हूँ
मै अब पूरा बेहिसाब सा
बंद बोतल की वो शीशी ......

ना रिश्ते दिखे ना नाते
(ना अब मुझको कुछ सुहाते) ...... २
उस अंगूरी पानी में ऐसा डूबा
ना चाहिए अब मुझे कुछ दूजा
बंद बोतल की वो शीशी ......

ऐसा छाया उसका नशा
(मुझको कुछ नहीं पता) ...... २
गिना रहा हूँ आखरी सांसें
फिर भी उसका चाहिए मुझे पता
बंद बोतल की वो शीशी ......

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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