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बड़ी भीड़ लगती है अब भी


बड़ी भीड़ लगती है अब भी

कौन उकसा रहा है इस बड़ी भीड़ को?
बांझ खुशियाँ मनाती बांटी खीर है

हमारी आज की कहानी है बस यही
अतीत का सवाल वो डर अब भी खड़ा   .

घड़ी का समय या समय की घड़ी
डूबे हुए शहर हैं और बस तैरते हुए गाँव

आह की सरगम या मिलन की छुअन
भीड़ एकांत है और बस मेरा एकांत मन

रंग 'लाल' भारत बंद और हम दागदार
जल रही है आग बस दिल से उठता धुंआ

बस भीड़ बढ़ती गई सब एक एक जुड़ते गये
होना था बस पीछे हमे तो हम भी हो लिये

धर्मसंकट है या कोई विपदा आ गयी
विवेक शून्य है  या कोई हो गया बड़ा हादसा

वैसे तो अब भी वो ही जमीन वो ही आसमान
तेरा और मेरा बदला बस बड़ी भीड़ ने रास्ता

तेरा और मेरा बदला बस बड़ी भीड़ ने रास्ता   ... २

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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