तेरे बारे में.....
कुछ अधूरे चित्र हैं रंग ने मुझे
खाव्ब उन आंखों के अधूरे बुनने मुझे
देखता हूँ तो खुद से हैरत होती मुझे
हालातों अकेले तुम से उनको लड़ते हुये
यह अहसास मेरा एकदम बिलकुल सच है
पतंग बन उड़ जाने को वंहा शाम मस्त है
नहीं है मूल्य इनका यंहा कुछ भी वंहा
आनंद नाम मेरा कहता है वो आ मिल जा गले
मुश्किलों के घुप्प अन्धेरों में वो फंसना मेरा
मुश्किलों से टकराकर खुद को परखना तेरा
समय-समय पर मुझे यूँ ही संभाला लेता है तू
गोदी बन माँ की अपने आँचल सुला देता है तू
आत्म-विश्वास यूँ ही मेरा बढ़ा लेता हूँ मै
दूर खड़े पहाड़ों जब तुम्हारे समीप आता हूँ मै
तेरे बारे में जब इतना सा ही सोच लेता हूँ मैं
अनुपम सुख आनंद की अनुभूति पाता हूँ मैं
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी


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