मेरे अपने घर आएंगे
मेरे अपने घर आएंगे
आज नहीं वो कल आएंगे
संग अपने सपने लाएंगे
आज नहीं वो कल आएंगे
कल भी ऐसे ही मिलूँगी
जैसे छोड़ गए थे तुम
राहों में बैठे बैठे
मुझ से दूर हुए थे तुम
कल एक नई बात भी होगी
चुपके से शुरुआत भी होगी
चुप रहूंगी आज भी मैं
बस बोलो गे तुम
मन ही मन मैं सोचूंगी
तन मन फिर अर्पित कर दूंगी
उस घर कोने में बिखरी पड़ी हूँ मैं
मन ने कहा आज कह दूँ तुम से
तब भी चुप थी आज भी चुप हूँ मैं
फिर अवकाश खत्म हुआ तुम्हरा
फिर आँखों से ओझल हुए तुम
मेरे अपने घर आएंगे
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी


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