ADD

गाथा तेरी अवर्णीय


गाथा तेरी अवर्णीय

पता  नहीं है क्या सोच रहा
क्षण प्रति क्षण जो मुझ से बोल रहा

बैठ अकेला वो रो रहा
सुख नींद दूर कोई  अकेला सो रहा

पराग ने अभी गहरी साँस भरी
वसुंधरा अभी भी हरी भरी

अपरिचित सृष्टि अल्कल्पनीय वो
विवेचना मेरी भी कह रही वो

नारी तेरी गाथा है अवर्णीय
काँटों से फूलों को क्यों तोड़ रहा

मुक्ति  ‘कोई तो’ प्रतीक्षा करता
इस भाव संग सब वो छोड़ रहा

संध्या उड़ते धूल भरी सरिता बह
स्वयं ही दासता बंधन तेरा जोड़ रहा

किसी मोड़ मै भी मिलूंगी  तुम से
क्षण प्रति क्षण जो मुझ से बोल रहा

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ