ADD

लाने बस चार आने मुझे


लाने बस चार आने मुझे

अभी बहुत दूर तक जाना मुझे 
लाने बस चार आने मुझे 
जगमग दिप खूब जलाये मैंने 
जब अंधेरों ने खूब ठगाये  मुझे 

भावनाओं ने रचा सारा खेल था 
अच्छाई  बुराई का सारा मेल था 
अपने आप को  इसमें चढ़ा लिया 
सुख और दुःख की जो चली रेल है  

छटपटाते  हुए जब हांफने लगा 
गजबज कर मैं उसे ढूंढने लगा 
पीछे छूटा मोड़ बहुत दूर था 
महसूस होता है सब उसी छोर था 

लगाई किसने वो स्नेह आवाज थी 
भावक हो बहक गया मैं उस राह 
ना जान सका मेरा  भला बुरा  
उस भ्रमक रहा पर  बढ़ता रहा   

कर्म होता है क्या  मुझको नहीं पता 
गिरते पड़ते उठते बस मै  चलता चला 
अभी बहुत दूर तक जाना मुझे 
लाने बस चार आने मुझे

बालकृष्ण डी ध्यानी 
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ