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भाग२७घपरोल

भाग२७ 

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" "

श्रीमती जी," सुणो जी जब बि तुम कै से मिते मिलांदा त बुल्द छवा कि ,' या मेरी श्रीमती च "।
श्रीमान ," पर तू आज किले पुछ्णी छै?"
श्रीमती," ए वास्ता , कि भौल मि आपर सहेली तें तुमार परिचय करोल । वेबरिं मिन क्या बुन?"
श्रीमान," यी म्यार श्रीमान जी छन । ।"
श्रीमती जी," मान लगाण,जरुरी च क्य। सिर्फ श्रीजी छन, बोलिक काम नि चलणु।"
श्रीमान," बिलकुल ना। मान जरुरी च लगाण। जन हम मति लगांदा" श्रीमती जी।"
श्रीमती जी," हम मा त मति च । तबि जैकि त मति लगादन सब । तुम मा न त मति( दिमाग) च अर् न ही क्वी मान . हर टैम हमार पेथर ही तुमार नाम आंदू। द्याख नि, जब भी क्वी ब्यौ कारड आंद त वै मा लिख्यूं रैंद" श्रीमती एवं श्री भगवान चंद ( सपरिवार) "। कख च यखम मान। उन भी जब कैपर मति ही नि ह्वैलि त मान कख बिटी हुण।
श्रीमान जी," कू रौंद त्यार दिमाग मा यू कबाड़ भुरणु।"
श्रीमती जी," यू मोबाइल । गूगल बाबा। तुमन ही त दिलाई।"
श्रीमान जी," मेरी मति खराब छै हौर क्या?"
श्रीमती जी," मति छा कख । वू त मैं मा च।"
श्रीमान जी," हे भगवान " ।

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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