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भाग२३ घपरोल

भाग२३   

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" "

श्रीमती जी," यी परात भौरिक भाण्डा कख लिजाणा छवा भैर ।सुबेर -सुबेर ।"
श्रीमान जी," अरे, राति क जुठ भाण्डा ध्वैक भैर दिवाल मा रखलु त पाणि नितरि जालु अर सुखि जाऽला।"
श्रीमती जी," तुमार दिमाग खराब च क्या। मि आफिक डालुल। छ्वाड़ा । वीं आपर पातर बौ पुष्पा तें दिखाणा खुणि हैं , कि मेरि घरवालि मि मा भाण्डा भि मंजवांदि।"
( थ्वाड़ा देर बाद)
श्रीमती जी," अब , सीं बाल्टी भौरिक झुल्ला कख लिजाणा छवा। अरे मेरी हेरी साड़ी बि च। कखि रगड़िक फाड़ि त नि द्याई।"
श्रीमान जी," बीस जोड़ी कपड़ा छ्याई। सबि चमकेक ध्वै येन मिन जन सदानि धूंद। घामा बाड़ मा डालि यांद मिन स्वाच जल्दी सुखि जाऽल।"
श्रीमती जी," मिते सब पता च। वीं पातर, आपरी पुष्पा बौ अर दुन्या तें दिखाणा खुणी कि श्रीमान जी भाण्डा ही नि मजांद झुल्ला भि धूंदांद। इना लावा सीं बाल्टी । मि आफिक डालूल झुल्ला घाम मा। कोरोना क कारण तुमते भैर नि जाण चयेंद।जैकु काम वे तें ही करण चयेंद।"
श्रीमान जी," हैं। मिन क्या ब्वाल भै।"
श्रीमती जी," हे मेरी पितलि गिच्ची। तुम बुल्द नि छाव पर दुन्या मा मेरि बेइज्जति करणा खुणि तैयार हुंवा छाई। जर्रा द्यख्यादि माटू कतना आयुं भितर पण। स्यू झाड़ू नि दिखेणू तुम तें। अब यू भी मिन ही याद दिलाण। अर हाँ पौंछा हथ न लगेन रगड़ - रगड़ कैरिक । वाइपर न मथि - मथि मंरत से फैरि दिंदा रोज - रोज ।"
श्रीमान जी," हैं। मिन क्या बोलि भै?"

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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