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भाग ४१घपरोल

भाग ४१

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" "

श्रीमती जी," यू इतना बडू थैला पर क्या ल्याऊं।"
श्रीमान जी," हुक्का अर तमाकू मंगायू लोनी गौं बिटी।"
त्यार धरमू ब्यौ च। त गौं बिटी पुष्पा बौ पिताजी आणा छन । वू हुक्का हि पिंदान। वू खुणि।"
श्रीमती जी,'" हे मेरी पितलि गिच्ची। वीं पातर पुष्पा क त पिताजी अर म्यार पिताजी खुणि बुल्दा त्यार बुबा वू बुड्या।"
श्रीमान जी," त्यार दिमाग खराब च क्या। तिन वेदिन म्यार फेसबुक लाइव कार्यक्रम मा धर्मेन्द्र नेगी अर ध्यानी भुलों बुल्यां नि सुण. बल हमतैं आपर संस्कृति अर सभ्यता नि भुलण चयेंद। तबि त मिन हुक्का मगैं।"
श्रीमती जी," वू भुला त गढवालि भाषा बचाणो बुना छ्याइ। जब आठ बजि वे रावत टैण्ट वाल भुला तैं तुम अंग्रेजी मा डांटणा छ्याई। तब याद नि आइ आपर बोली भाषा , संस्कृति - सभ्यता।"
श्रीमान जी," आठ बजि बाद त त्यार बुबा यू बुड्या बि अंग्रेजी फुगद चटेलिक । द्वी घूंट अगर साढू भै सिपै भुला जू नि पिले द्याव जब बुड्या तैं."
श्रीमती जी," पर ये हुक्को सज्यला क्यान सुल्गान। यख त लाखड़ क कोयला बि नि मिलद। अर चुल्लू बि नि लगै सकद।"
श्रीमान जी," तेरि जुबान कम च क्या आग लगाणा खुणि। तू हि सुलगै दैन हुक्कौ चिलम ।"
श्रीमती जी," हे भगवान। मि त धरमू ब्यौ तक रुक्यूं छौं. मिन आपर भुला दगड़ वैदिन ही मैत चलि जाण. कथा खतम हुंद हि। तब तै हुक्का पर हि मुण्ड फुणा रैन।"
श्रीमान जी," बत्तीस साल ह्वै गैन सुणद -सुणद। आज तक त तू भागि नि छै मैत। पर व्हाइ क्य च।
मिन त कुछ भि नि ब्वाल . . .

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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