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भाग ५५घपरोल

भाग ५५

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" "

सुबेर-सुबेर घपरोल"
श्रीमान जी," क्या बात भै! तू भितर भैर किले रिटणी छै? तबियत ठीक छा कि ना!"
श्रीमती जी,"तबियत खराब ह्वैलि. . . ।छोड़ो अब सुबेर-सुबेर कैकू नौं लिणू छौ.!
श्रीमान जी," मि समझ्यूं ग्यों । जरुर तू पुष्पा बौ नौ . . ।
श्रीमती जी," तुमतें वींक सिवा कुछ हौर भि सुझदी।चौबिस घंटा वींक ही सुपन्यों मा।"
श्रीमान जी,"त क्यांक उठा- पोड़ हुईं त्वै ते।"
श्रीमती जी," अरे ब्वारिन ड्यूटी ज्वाइन करण छै आज सोमबारे खुणि . सुबेर नौ बजि। अभि तक नि आई. यू धरमूक भि फोन नि लगणू।"
श्रीमान जी," इन बुल्दी कि डैर लगणि। अफार पुष्पा बौ अर जया मैड भी आपर गेट मा ही खड़ छन वूंक इंतजार मा."
श्रीमती जी," जब मि तुमसे नि डरदू त वीं पु . . से डरन मिन.मिते त ब्वारिक नौकरिक चिंता च।"
श्रीमान जी,"अरे वर्क फ्राम होम च अचकाल। आफिस जाणो जरुरत नि।बस लैपटाॅप पर हाजरि लगौण।"
श्रीमती जी,"पर वर्क फ्राम होम खुणि आपर होम पर हुण त जरुरी च."
श्रीमान जी,"त्यार दिमाग जन जगा-जगा भितरम बैठि घूमणू रौंद. उनि आफिसो लेपटाॅप दगड़ मा रखि आप कखि भि काम कैरि सकदा ।बस नेटवर्क हूण चयेंद."
श्रीमती जी,"ओ तबि छै वा पातर तुमारी पुष्पा बौ ब्वारी खुणि चिल्लाणी "बेटे मेरे घर मे अच्छा आता है नेट। यहीं काम कर लिया कर बल।"
तबि त वीं ते सर्रा दुन्याक खबर रेंदा. गज़ब कू नेटवर्क सर्विस च वींक घारम।"
श्रीमान जी,"जादा नि बोल तू। मिते गुस्सा आणू। किले फिर नेटवर्क पर भि तू पुष्पा बौ नौ लगाणि छै. हर जगा विं बिचारी बौ तैं बदनाम करदि.फिर नि बोलि कि मि जाणू छौं मैत।
पर मिन त कुछ नि बोली.

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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