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भाग२५घपरोल

भाग२५  

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" "

श्रीमान जी," कैकु फोन छ्याइ। जू इतना देर कचर- पचर लगिं रै मोबाइल पर?"
श्रीमती जी," मेरि समधणिक छ्याइ। अजक्याल समधी बहुत सेवा करणा छन बल ।"
श्रीमान जी ," यू क्वी नै बात च क्या?"
श्रीमती जी," हाँ! नै बात च.। अाफ कैकि सुख- दुख पूछण नि। समधणिक एक टांगणू लछमुड़े ग्याइ बाथरुम मा फिसलिक। त समधी जी रात दिन बल सेवा करणा छिन। अर् एक तुम छवा कि म्यार हथ कैदिन बिटिक दुखणू पर तुमारि भाँ । मालिस बि नि कैरि सगद समधी जीक तराँ।"
श्रीमान जी," अरे चिंता नि कैरि। जैदिन तू लमडिल अर त्यार दि्वी टांगण टूटी जाऽल त मेरी समधणिक कसम । वू त्यार समधी बुढ्या क्या सेवा करदू मेरी समधणिक । दिखिन तू मि भौत जादा सेवा करलू तेरी, बस।"
श्रीमती जी," क्या "?
श्रीमान जि," कुछ ना। मिन क्या बोलि भै।"

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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