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भाग ३१घपरोल

भाग ३१

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" "

श्रीमान जी," अरे! म्यार ये चश्मा एक आंख तरफो कांच टुटि ग्याई। अब मिते एक ही आंखन दिखण प्वाड़ल ।"
श्रीमती जी," बैं तरफ कि दैं तरफो।"
श्रीमान जी," दैं तरफौ।"
श्रीमती जी,_" मिते पैलि पता छ्याइ। तुमन जाणि बूझिक तोड़ी व्हाल दैं तरफौ। ताकि पैलि क तरां वीं बैं आंखन तुम वीं पातर अपणि पुष्पा बौ त दिखदा राव। वींक कूड़ि हमार घारो बैं तरफ जू च । अर् हमार तरफ चुकापट।"
श्रीमान जी," क्य ? जादा नि बोल। मिन त्यार चश्मा बि तोड़ि दिण बैं तरफ तब पता चाललु कि एक आंखिन कन दिखेंद। "

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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