भाग २९
सुबेर-सुबेर घपरोल
" आजो गढवालि चुटकला" "
श्रीमान जी," आज इतना सामान क्या ल्याऊं भै ?तीन पैकेट " नेगी साड़ी श्रृंगार' छप्यूं ते म । तीन साड़ी त्यार दिमाग खराब त नि च। "श्रीमती जी," दिमाग म्यार न, तुमार च। भै क ब्यौ मा जाणू छौं । क्वी मजाक च क्या "।श्रीमान ," पर साड़ी त छक्यणा छन। अबि त बेटी क ब्यौ म ले छै।"श्रीमती जी," हे मेरी पितली गिच्ची । तुमार वीं पातर पुष्पा बौ तैं बुना खुणि कि पुराणी साड़ी पैरिक घुमणि भुला क व्यौ मा। एक पीली बाना टैम, हैंक लाल बरात मा अर तीसरी हेरि रिसेप्शन मा खुणि। कुछ समझ बि च। वा तुमारि पुष्पा बौ त ब्रेकफास्ट, लंच , डिनर क हिसाब से सूट बदलदि। यू त नि सीख तुमन वीं पातर मान ।" श्रीमान जी,_" मिते क्वी जरूरत नि सिखणो। म्यार त इक्कु सूट चनु च । जू मिन आपर ब्यौ मा सिले छ्याइ। जतुक तेरी उम्र नि वै से जादा बारात म चलि ग्यूं मि ये तैं ही पैरिक। मि खुणि त कैन कुछ नि ब्वाल आज तक।समझी गे तू। "श्रीमती जी," तुम खुणि कैन बुन्या। लोग तुम तैं थोड़ा दिखदान। वू त मि रौंद दगड़ मा त मेरी नै नै साड़ी दिखदांन वू सबि तुमारि बौ, दीदी भुलि।"श्रीमान जी," जादा बकबास नि कैर। रुप्या कतुक खर्च कैरि याल यू बतौ।"श्रीमती जी," बाना वालि पीलि साड़ी द्वी हजार, बारात वालि लाल तीन हजार हैरि रिसेप्शन वालि पांच हजार की छन। "श्रीमान जी," पूरु दस हजार खर्च कैरि याल। द्वी द्वी हजार तीन ले आंदि।पैंसा कख बिटी लिगी तू।"श्रीमती जी," वू तुमार जू न्यौत अर ट्रेन किराया खुणि रख्यां छाइ। वूं ते खर्च कैरि याल।"श्रीमान जी," अब न्यौत कनकै दिण. अर आण जाणू किराया भी। मि नि आणू ब्यौ मा। त्वी चलि जा। तू ठीक बुनि छै। त्यार ना दिमाग म्यार ही खराब छ्याइ जू वू दस हजार तैमा रखैन।"श्रीमती," क्वी बात नि। मि फोन कैरि द्यूंद भुला खुणि। वू गाड़ी भेजि द्यालू। ड्यारदूण क्वी दूर च क्या। जू म्यार पिताजी पिठे लगाल वे तें ही न्यूत लिखे द्य्यूल। वनि भि ते पुराणु कोट मा तुमार कोट त दिखेंदी ही नि। तोंद ही तोंद नज़र आंदि। पैंसा द्याव मिन तीन ब्लाऊज भी सिलाण आज ही।" श्रीमान जी," हे भगवान ! क्या कोरु मि।"
श्रीमान जी," आज इतना सामान क्या ल्याऊं भै ?
तीन पैकेट " नेगी साड़ी श्रृंगार' छप्यूं ते म । तीन साड़ी त्यार दिमाग खराब त नि च। "
श्रीमती जी," दिमाग म्यार न, तुमार च। भै क ब्यौ मा जाणू छौं । क्वी मजाक च क्या "।
श्रीमान ," पर साड़ी त छक्यणा छन। अबि त बेटी क ब्यौ म ले छै।"
श्रीमती जी," हे मेरी पितली गिच्ची । तुमार वीं पातर पुष्पा बौ तैं बुना खुणि कि पुराणी साड़ी पैरिक घुमणि भुला क व्यौ मा। एक पीली बाना टैम, हैंक लाल बरात मा अर तीसरी हेरि रिसेप्शन मा खुणि। कुछ समझ बि च। वा तुमारि पुष्पा बौ त ब्रेकफास्ट, लंच , डिनर क हिसाब से सूट बदलदि। यू त नि सीख तुमन वीं पातर मान ।"
श्रीमान जी,_" मिते क्वी जरूरत नि सिखणो। म्यार त इक्कु सूट चनु च । जू मिन आपर ब्यौ मा सिले छ्याइ। जतुक तेरी उम्र नि वै से जादा बारात म चलि ग्यूं मि ये तैं ही पैरिक। मि खुणि त कैन कुछ नि ब्वाल आज तक।समझी गे तू। "
श्रीमती जी," तुम खुणि कैन बुन्या। लोग तुम तैं थोड़ा दिखदान। वू त मि रौंद दगड़ मा त मेरी नै नै साड़ी दिखदांन वू सबि तुमारि बौ, दीदी भुलि।"
श्रीमान जी," जादा बकबास नि कैर। रुप्या कतुक खर्च कैरि याल यू बतौ।"
श्रीमती जी," बाना वालि पीलि साड़ी द्वी हजार, बारात वालि लाल तीन हजार हैरि रिसेप्शन वालि पांच हजार की छन। "
श्रीमान जी," पूरु दस हजार खर्च कैरि याल। द्वी द्वी हजार तीन ले आंदि।पैंसा कख बिटी लिगी तू।"
श्रीमती जी," वू तुमार जू न्यौत अर ट्रेन किराया खुणि रख्यां छाइ। वूं ते खर्च कैरि याल।"
श्रीमान जी," अब न्यौत कनकै दिण. अर आण जाणू किराया भी। मि नि आणू ब्यौ मा। त्वी चलि जा। तू ठीक बुनि छै। त्यार ना दिमाग म्यार ही खराब छ्याइ जू वू दस हजार तैमा रखैन।"
श्रीमती," क्वी बात नि। मि फोन कैरि द्यूंद भुला खुणि। वू गाड़ी भेजि द्यालू। ड्यारदूण क्वी दूर च क्या। जू म्यार पिताजी पिठे लगाल वे तें ही न्यूत लिखे द्य्यूल। वनि भि ते पुराणु कोट मा तुमार कोट त दिखेंदी ही नि। तोंद ही तोंद नज़र आंदि। पैंसा द्याव मिन तीन ब्लाऊज भी सिलाण आज ही।"
श्रीमान जी," हे भगवान ! क्या कोरु मि।"


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