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भाग ४५घपरोल

भाग ४५

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" "

श्रीमती जी," द्य्याखा जि . हमार धरमू ब्यौ से पैलि सबि काम पूर ह्वै जाण चयेंद. निथर आखिरी टैम पर उकलताक ह्वै जांद."
श्रीमान जी,"चिंता नि कैर। ।बस कच्चू हल्दू लाण बाना टैम खुणि. बस.हौर क्वी काम नि बच्यूं। अरसा त बणान नि. जू तिन पिठू कुटण ह्वा।"
श्रीमती जी," ल्याव. म्यार नै सूट प्रेस कारा। यू काम त रै ही ग्याइ. तुमार वीं पातर पुष्पा बौ न हरके फरके गुंज मुंज कैरि द्य्याइ। प्रेस वालू तैं पाँच सूटो पचास रुप्या किले दिणान. तुमार पैंसा बचाणू छौं।
श्रीमान जी," दस हजार सटू खरिदक पचास रुप्या बचणौ बात कनि वख। मि जर्रा अगल बगल घुमिक आंदु"
श्रीमती जी," क्वी जरुरत नि. आपर पातर पुष्पा बौ चा कुऽला पिण जाणा ह्वैल. इतना काम पुड्यूं घारम।"
श्रीमान जी," सूट ला जल्दी. प्रेस बिण्डि गरम ह्वे ग्याइ।
श्रीमती जी," ल्याव। मि तैबरीं द्वी लुट्या पाणि डालिक आंदु। नयैक पूजा बि कन।
(भैर हल्ला हुंद । कि पुष्पा बौ हीटर न फ्यूज उड़े तार पर आग लगि ग्याइ। श्रीमान जी गरम प्रेस सूट मा धैरिक पुष्पा बौ घार आग बुझाण भागि)
श्रीमती जी,"कख बिटी आणा सांस फुलेक । लड़े मा जायां छा क्य।
श्रीमान जी," अरे!पुष्पा बौ क घार आग लगि गै छै बगल मा. वीं तैं बुझै आणू। आज त चा बि नि मिल. बढिया चा बणौ. द्वी क द्वी प्यूला आराम से यखम बरामदा मा बैठिक।"
श्रीमती जी," या कुतराण कख बिटी आणि"
श्रीमान जी," अरे पुष्पा बौ घार बिटी आणि।पड़ौसम तार फुके ग्याइ हीटरो।वांक ही च। "
श्रीमती जी(भितर बटि)," हे धरमू बुबा। आग त हमार भितर लगि ग्याइ। म्यार नै क नै सूट फुकै ग्याइ। ये मनखि ई काम छन। क्वी बि काम ढंग से नि करण ।सर्रा सुलार फुकै ग्याइ अर बगल मा पुछणू या कुतराण कख बिटी आणि।
श्रीमान जी," अरे तू भैर जा। बिजली मीटर बंद कैर।
पाणि बाल्टि डालि याल । अोह ! बुझि ग्याइ।परजामा रैंद क्या? त्वेते पता नि चाल कि कपड़ा फुकै गैन।"
श्रीमती जी," है भगवान। दोष मि पर ही। म्यार द्वि हजारो सूट फूकि द्य्याइ सुबेर- सुबेर। आपर भितर आग लगैक हैंक क आग बुजाणो भागणु यू आदिम।मेरि त किस्मत हि फुटिं रै जू यू मनखि म्यार किस्मत मा लिख्यूं छ्याइ।
श्रीमान जी," क्वी बात नि। अरे दस रुप्या प्रेस क बचि गैन।"
श्रीमती जी," है भगवान. मिन त मैत भागि जाण. जनि सासू भेंट खतम ह्वाल ।
श्रीमान जी," बत्तीस साल ह्वै गैन सुणद-सुणद। आज तक त भाजि नि छै मैत। जा अबि जा।
पर मिन त कुछ नि बोलि. . . .

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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