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भाग१४ घपरोल

भाग१४  

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" "

जनानि," जब भी मि फोन करदू । त आवाज आंदि," वो अभी अन्य कौल पर बिजि हैं" । मि पूछण चांद क्वा च वा काल"?
पति देव," क्वी ना भै। तू त सुदि हल्ला कनि रैंद। बैणि दगड़ करणू रौंद बात। पर वा फोन छुढत ही नि। त मि क्या कौरु? "
जनानि," तबि त। जरुर आग लगाणि रैंद होलि। बड़ी मुश्किल से त ब्यौ कैरिक धक्का द्याई। लाखों खर्च करिन हमन। सुसर जी अर सास जी हम पर थोपि चलि गै छ्याई। अर अब क्या चयेणू जू रात दिन तुमार ही फोन पर काल कनि रेैंद।"
पति देव," अरे यार। त्यार दिमाग खराब च। मि आपरि ना तेरी बैणिक बात कन्नू छौं। तेरी बैण छ्वीं लगाव , मेरी स्यालि त मि कनकै काटलू फोन। भौत मिठि छ्वीं लगांदि ।"
जनानि ," हैं " ।

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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