भाग ४८
सुबेर-सुबेर घपरोल
" आजो गढवालि चुटकला" "
श्रीमान जी," पुष्पा बौ नज़र नि आणि आज भैर-भितर करद भि।"श्रीमती जी," नराज ह्वेक फरकेणि च बल।कि ब्यौ मा नि बुल्या धरमूक तुमन."श्रीमान," सब त्यार कारण.मिते त्यार बुबौ क जगा पर बुलाणू छ्याई. कि ममा आणू त नना रुकि जालू।पर तिन ही ब्वाल कि निथेर मिन मैत चलि जाण. पुष्पा बौ तैं बुल्याई त।"श्रीमती जी," एक वा ही च क्या. कति नराज छन. मेरि भुलि बोम्बै वालि बि त नि बुल्याई तुमन."श्रीमान जी,' जादा बकबास नि कैर . सरकारी आदेश छ्याइ सिर्फ पचास की गैदरिंग.पच्चीस ब्यौलाक अर पच्चीस ब्यौलिक तरफ बिटी।अर डैर भि. अच्छा . एक साड़ी अर लड्डू क डब्बा दे. मि जांदू पुष्पा बौक ध्वार. अर माफी मांगी आंदू"श्रीमती जी," जू ब्यौ मा छ्याई वूं सब तैं मिन वखिम दि याल छै होटल मा. अब साड़ी मेरि जू ल्याई छै सब खतम।"श्रीमान जी," एक साड़ी मेरि आलमारी मा च पीली रंग क. वि तैं दि आंद मि. मिठेक डब्बा त भौत छन लमडणा तख पन. म्यार आपर पुराण साब क जनानि खुणि ल्याईं छै."श्रीमती जी," वा त मिन बामण भुलोक बामणि खुणि दे द्य्याई। खेल खतम ,पैंसा हजम।"श्रीमान जी," क्वी बात नि. दस बजि दुकान खुलालि त मि उन्नि नै साड़ी खरिदक लांदू।"श्रीमती जी," त ठीक च मेरि पांच बैणि नि बुल्याइ त वूं खुणि भि लावा. मि कोरियर करै द्य्यूल धरमू मा. निथर मिन मैत चलि जाण जनि परस्यों जनि धरमू द्वार बाट कैरिक आलू वापस."श्रीमान जी," बत्तीस साल व्है गैन सुणद सुणद "मिन मैत भागि जाण. ग्याई नि छै आज तक।खेैर मिन त कुछ नि ब्वाल. . .
श्रीमान जी," पुष्पा बौ नज़र नि आणि आज भैर-भितर करद भि।"
श्रीमती जी," नराज ह्वेक फरकेणि च बल।कि ब्यौ मा नि बुल्या धरमूक तुमन."
श्रीमान," सब त्यार कारण.मिते त्यार बुबौ क जगा पर बुलाणू छ्याई. कि ममा आणू त नना रुकि जालू।
पर तिन ही ब्वाल कि निथेर मिन मैत चलि जाण. पुष्पा बौ तैं बुल्याई त।"
श्रीमती जी," एक वा ही च क्या. कति नराज छन. मेरि भुलि बोम्बै वालि बि त नि बुल्याई तुमन."
श्रीमान जी,' जादा बकबास नि कैर . सरकारी आदेश छ्याइ सिर्फ पचास की गैदरिंग.पच्चीस ब्यौलाक अर पच्चीस ब्यौलिक तरफ बिटी।
अर डैर भि. अच्छा . एक साड़ी अर लड्डू क डब्बा दे. मि जांदू पुष्पा बौक ध्वार. अर माफी मांगी आंदू"
श्रीमती जी," जू ब्यौ मा छ्याई वूं सब तैं मिन वखिम दि याल छै होटल मा. अब साड़ी मेरि जू ल्याई छै सब खतम।"
श्रीमान जी," एक साड़ी मेरि आलमारी मा च पीली रंग क. वि तैं दि आंद मि. मिठेक डब्बा त भौत छन लमडणा तख पन. म्यार आपर पुराण साब क जनानि खुणि ल्याईं छै."
श्रीमती जी," वा त मिन बामण भुलोक बामणि खुणि दे द्य्याई। खेल खतम ,पैंसा हजम।"
श्रीमान जी," क्वी बात नि. दस बजि दुकान खुलालि त मि उन्नि नै साड़ी खरिदक लांदू।"
श्रीमती जी," त ठीक च मेरि पांच बैणि नि बुल्याइ त वूं खुणि भि लावा. मि कोरियर करै द्य्यूल धरमू मा. निथर मिन मैत चलि जाण जनि परस्यों जनि धरमू द्वार बाट कैरिक आलू वापस."
श्रीमान जी," बत्तीस साल व्है गैन सुणद सुणद "मिन मैत भागि जाण. ग्याई नि छै आज तक।
खेैर मिन त कुछ नि ब्वाल. . .


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