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भाग ८७ घपरोल

भाग ८७  

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" " "

"सुबेर-सुबेर घपरोल"
श्रीमान जी," छि भै। यख त घामो दर्शन हि नि हुणा.अहा उत्तराखण्ड गौं मा क्या चटेलि घाम तपै।"
श्रीमती जी," डाक्टरों न ब्वाल कि उंद आवा। कौन से कमै करणा छवा यख । इन ब्वालद कि वीं अपणि पुष्पा बौ डैर भागिक आवा यख।"
श्रीमान जी," अरे निरभैगि। तैपर दिमाग च कि ना।हर बात मा वीं बौ तैं शामिल करद। मि मंदिरो धर्मशाला मा रौं पांच दिन अर बौ पैलि चलि गै छै आपर घार"
श्रीमती जी," मि सब पता च। भट्ट द्य्यूरो दुकान बिटी एक हजारो राशन अर सब्जी मंगै तुमन। दमा दीदीन सब खबर भैजि मि खुणि। अर आधा किलो देशी घी बि।"
श्रीमान जी," लिजाणो नि छै तब । भुखि रैण छ्याइ हमन।"
श्रीमती जी,'" हमन क्य?। होोर कू छ्याइ वख?।मतबल वीं पातर तैं बि तुमि खिलाणौ रौ। अर हम खुणि बुलदा कि फालतू खर्च करदां."
श्रीमान जी," त्यार त दिमाग मा पत्थर पुड़यां छन. पांच दिन से पैलि कै गौं वालों हम तैं गौं मा हि नि आणि दे।बल तुम भैर बिटी आयां छवा।द्वी हजार टैक्सी करिं छै कोटद्वार बिटी बजार तक. फिर बजारम सब्यूंन ब्वाल सीधा धर्मशाला मा जावा ।वख बजाराम बि नि उतरणि द्याइ हमतैं . त पांच सौ रुपया हौर देकि सीधा जंगल मंदिर धर्मशाला मा पौंचा हम।"
श्रीमती जी,' त कू छ्याइ हैंकू।"
श्रीमान जी," क्वी नै ब्यौलि नि छै मेरी।पंडित जी छ्याइ मंदिरों कोटद्वार। बिटी ही लिज्यायूं दगड़ कार मा। त्यार दिमाग त पैथर हि च आज तक।"
श्रीमती जी," जब तुम मंदिर मा छ्याइ. त तुम हगणौ वीं पातरों टायलेट मा आधा किलोमीटर उंद गौ मा किलै ग्याव । जबकि धर्मशाला मा सबि सुविधा च. वीन पटवारै मा किलै घसीट तुमतैं. "
श्रीमान जी ," दिमाग चाटि याल तीन म्यार.सर्रा रामायण सुणै याल। अर फिर वी हि सवाल कि "सीता किसका बाप था"। जा! नि बताणौ मिन। कैरि लि तू बि ,जू कुछ करणा."
श्रीमती जी," हे धरमू ,हे धरमू . . . .
(घपरोल जारी)।

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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