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भाग ८९घपरोल

भाग ८९

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" " "

"सुबेर-सुबेर घपरोल"
श्रीमान जी," अरे! बौ कब आइ ह्वेलि?अफार बरामदा साफ करणि च।"
श्रीमती जी," तबि त मिन बोलि कि यू आदिम ये जाड्डू मा सुबेर- सुबेर भैर किलै बैठ्यूं। सूरजो न बल्कि वीं पातरो दर्शन कू ध्यान कन्नू."
श्रीमान जी," जादा बकबास नि कैरी। मि त रोज हि सुबेर योगा ध्यान करदु जब बिटी ब्लड प्रेसर बीमारी ह्वै. वू त जनि मिन आपर आंख खुलिन बौ सामणि पर।"
श्रीमती जी," इन बुलदी कि बंद आंख मा बि वींक ही सुपन्या दिखेदी।यूं भै बौ,काका-भतिजो कुटुम्बदारी पैथर तेरी समाज सेवा न हमतैं कखिक नि राखी। निथर हमार बि जिठा जीक तरां एक बीगा मा कोठी हुंद ड्यारदून मा।"
श्रीमान जी," सब भगवान दिखणू। आपरुक सेवा कैरिक जू खुशी मिलदी वै बराबर त सुख कखि नी च।"
श्रीमती जी," पर आपरी झुपड़ी पर आग लगैक समाजो जाड्डू भगाण बि त क्वी समझदारी नि।
श्रीमान जी," क्य मतबल?"
श्रीमती जी," अबि समझ नि ऐ क्य। जौंक जीवन भर सेवा करदु रै वून हि पटवारी मा पिटवै याल छ्याइ। निरभै समाज सेवक।!"
श्रीमान जी," म्यार त सिद्धांत च"नेकी कर कुएं में डाल"
श्रीमती जी," इन बुलदि कि नेकी कर अर् कुटुंब दारी तैं कुएं मा डाऽल। जन हम रुणा छौं आज।"
श्रीमान जी," अफार बौ झाड़ू उठेैक इना हि दिखणी। बौ सिमानि, नमस्कार। ठिक छन मैत मा. कैबरिं आवा।"
पुष्पा बौ,' "आपर सिवा आफ मा हि धैर। तेरी हेमामालिनी भितेर किलै ग्याइ मितै देखि। अरे बल सबकुछ से गै त रामारुमि से बि गै।
श्रीमान जी," बौ त्वै पता च कि वा जरा गरम दिमागो च."
पुष्पा बौ," गरमी त मि निकाल्दु भौल तखि ऐक।ब्वारी आलि जब मैत बिटी। वा मितै समझदार लगदी। तेरी जनानिक दगड़ कैन करण दिमाग खराब। हमार टायलेट बणैक आवा झट्ट गौं मा। तोड़ी-ताड़ी सलपट भागीक यख आइ गै हैं तू।"
श्रीमती जी," मि कैकि डैर नि। हम किलै बणौ टायलेट कैकू । मि अर् धरमू जाणो घार। हम आपर पुंगड़ मा हि बणौला चाहे हमतैं नाजायज कंसट्रक्सन तुण हि प्वाडल! बस।"
पुष्पा बौ," ओह ! त महारानी, लुकिक सब सुणि। "कैसे तोड़ सकते हो बनी बनाइ चीज।अबि तो हमने पटवारी हि बुलाया था कल जेल बि करवा देंगे। क्या चिताता है कोई अपने आपको । चालिस साल बिटी हम देख रहे हैं वो खेत।"
श्रीमान जी," बौ नाराज नि हू। सब ठिक ह्वै जालु।"
श्रीमती जी," जादा नि बणौ तुम।मिन आज हि तुम अर तुमार बौक निपल्टू नि कार त देखि लेन फिर. । हाँ"।
श्रीमान जी," मिन क्य बोलि। मि दूध लिणो जांदु। मिन त कुछ बि नि बोली भै. . . .
(घपरोल जारी)

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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