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"क्य आपतैं नि पता "



"क्य आपतैं नि पता "
आज सुबेर-सुबेर बमराड़ा जीक घार बिटी जोर - ज़ोर चिल्लाणौ आवाज़ आणि छै।
वूंक पडोसी हुणो कारण म्यारु फर्ज़ छ्याइ मि जैकि खबरसार ल्यूं कि क्य बात ह्वै ह्वाल। किलै च हल्ला हुणू।
आपतैं नि पता कि इन मौका पर जादातर पड़ोसी चटपटि खबरो लिणा खुणि हि आंदान । वूं तैं पड़ोसीक फर्ज़ वर्ज से क्वी मतबल नि हुंद ।पर मि वास्तौ मा मदद करणो हि ग्यों।
खैर , मिन बॅमराडा जीक घार क घंटी बजै त, तबेैरिं वातावरण कुछ शांत ह्वै ।
" अरे बॅमराडा जी, क्य ह्वै? सुबेर-सुबेर कुछ उख्यड़्यां सि नज़र आणा छवा" मिन मिडिया वालों तरां मामलो पता करणो सवाल कार।
" अरे , कुछ ना पंडित जी, ये नालयक तैं समझाणू छौं।" वून आपर बत्तीस सालूक विवाह्यूं लड़िको तरफ इशारा करद ब्वाल " कि ये तैं आपर पहाड़ अर् संस्कृति दगड़ प्रेम करण चयेंद। पर यू मिते हि पूछणू कि " म्यार अपणि पहाड़ संस्कृति ,बोली-भाषा ,सभ्यता व प्रेम बढाण मा क्य सहयोग रै । जिंदगी भर क्य फरकै आपरु पहाड़ो वास्ता ।"
"ये तैं क्या पतौ कि मिन आपर 90-92 वर्षों कुि ब्वै -बाप गौं मा हि छ्वड़िन सदानि ताकि हमार पहाड़ो संस्कृति, मकान, सभ्यता, पुंगड़ि -पाठलि बचैं रैं ।वू बिचार अपणि 500 रुप्यौं वृद्धा पेंशन मा ही गुजर -बसर करणा रैं।अर यू आज मिते पूछणू कि मिन क्य कार।" अब पंडित जी क्य आपतैं नि पता।
बॅमराड़ा जी इन बताणौ छ्याइ कि जन वून कतना महान त्याग कैरि आपर पहाड़ो वास्ता ।
वूंक बथ सुणि मि चुपचाप गरदन झुकै उंद उतरि ग्यों ।
क्य आपतैं नि पता कि हम सभ्यौं बि जादातर इन्नि सहयोग च अपणि पहाड़ै बोली- भाषा,सभ्यता और संस्कृति बचाण माI
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