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कल्पा



बस पहाड़ियों को चीरते हुए नागिन जैसी घुमावदार सड़क पर सरपट दौड़ रही थी। कल्पा के घुंघराले बाल खिड़की से आती फर्र -फर्र ठण्डी हवा से उसके चेहरे पर हिचकोले खा रहे थे। । बाबा सुबह ही लैंसडाउन बस स्टेण्ड पर सात बजे की बस में उसे बिठा गये थे। बाबा ने अपनी तहसील की मामूली नौकरी में भी उसे एम एस सी (फिजिक्स ) करवा ही दिया। माँ तो बहुत कमजोर हो गई थी। पंद्रह साल की बाल अवस्था में शादी और सोलह साल की पूरी भी न हुई थी कि कल्पा पैदा हो गई। कितनी दर्द भरी दास्तान थी माँ की भी। तभी माँ ने सोच लिया था कि वह अपनी कल्पा को खूब पढ़ायेगी पर उसका बाल विवाह कभी न करेगी।
बाबा का सपना था कि अपनी इकलोती संतान को खूब पढ़ा लिखाकर शिक्षिका बनाकर ही दम लेंगे। लेकिन शायद ईश्वर ने कल्पा के भाग्य में कुछ और ही लिखा था ।कल्पना को उसके बाबा - माँ प्यार से कल्पा बुलाते थे ।
कल्पा देखने में बहुत ही खूबसूरत थी । घने ,काले घुंघराले बाल, बड़ी-बड़ी हिरन जैसी आंखे, रंग गौरा, संतुलित शरीर और चेहरा तो सर्दियों में सेब की तरह लाल हो जाता था।
कल्पा ऐसे सपनों में खो गई थी कि उसे पता ही नहीं चला कि डेढ़ घण्टे का सफर कैसे कट गया। कोटद्वार पहुंच कर उसे रात की मसूरी एक्स्प्रेस से दिल्ली जाना था।दिनभर दूर की रिश्ते की दीदी के घर आराम किया । रात को नौ बजे उसके जीजा जी ट्रेन में बिठा गये थे।रात भर स्लीपर क्लास की अपनी ऊपर की सीट पर सुनहरे सपने देखते -देखते कल्पा कब सो गई उसे पता ही तब चला जब सुबह सात बजे ट्रेन दिल्ली जंक्शन के प्लेटफार्म नम्बर सात पर झटके के साथ रुकी।
दूर के रिश्ते में गोबिंद मामा ने अमेरिका में बिजिनेस कर रहे अपने साले पंकज से उसकी शादी की बात चलाई थी।वो लोग कुछ दिन के लिए ही भारत आये थे ।
गोबिंद मामा दिल्ली जंक्शन में ही उसे लेने आये थे।
- लो बेटा, आ गया किदवई नगर। बिलकुल सफदरजंग अस्पताल के पास ही है। अस्पताल का नाम तो सुना होगा ।
- जी मामा जी । अच्छी तरह। इसको कौन भूल सकता है। मेरी सहेली अल्पना, जिसको दहेज लोभियों ने जला दिया था , ने यहीं तो अपनी अंतिम सांस ली थी। बर्न डिपार्टमेंट फेमस है यहाँ का।
नाश्ता कर गोबिन्द मामा व उनकी पत्नी कल्पा को लेकर सीधे रोहणी लड़के वालों के घर पहुंच गए। कल्पा चुपचाप सब कुछ देखती -सुनती रही । लड़का पंकज देखने में उसे अच्छा ही लगा। उसी समय सभी ने निर्णय लिया कि एक हफ्ते में कोर्ट मैरिज कर दस पंद्रह दिन में कल्पा के साथ ही अमेरिका वापस चले जायेंगे।
गोबिन्द ने फोन कर कल्पा के माँ-बाप को तुरंत दिल्ली बुला लिया।गोबिंद मामा ने उनको पटा कर राजी कर लिता था। सारे ख़र्चे पंकज के पापा ने उठाया।एक होटल में बीस लोगों की उपस्थिति में कल्पा की शादी हो गयी। कोर्ट में रजिस्ट्रेशन , पासपोर्ट आदि सारे काम पंकज के पापा ने ले देकर एक हफ्ते में पूरे करवा दिए।
एयर इंडिया की अठारह घंटे की थकानभरी फ्लाइट के बाद कल्पा ने न्यूयॉर्क शहर की चकाचोंध देखीं ,पर उसका दिल-दिमाग तो अपने खूबसूरत पहाड़,खेत , खलियान नदी में ही खोया था।
अपने न्यूयॉर्क के घर पहुंचते ही सब लोग आराम फरमाने लगे।कल्पा को किचन का सामान दिखाकर, जरुरी चीजें समझाकर खाना बनाने का आदेश दे गये। किचन के साथ वाला एक छोटा सा कमरा उसे दे दिया गया।
दोपहर बाद उसकी हम उम्र अंग्रेज महिला सूटकेस लिये घर में आई और सीधे उसके पति का चुंबन लेकर पंकज के साथ ही उसके कमरे में चली गई।शाम को उसके सास ससुर कल्पा बैठक में नज़र आये ।कल्पा ने उस महिला के बारे में पूछा तो दहेज का ताना दे उसे डाँट कर भगा दिया गया। कल्पा अपने सास-ससुर के बदले तेवर देख अचंभित हो गई।पंकज भी उससे बात नहीं करता।चौबिस घण्टे उस अंग्रेजन के साथ ही मस्त रहता।
कल्पा के रात-दिन रोते -रोते कटने लगे। जिंदा रहने के लिए कुछ निवाले जबरदस्ती मुंह में डाल लेती। न फोन की सुविधा न टीवी। घर का हर काम उसे ही करना होता। एक दिन उसने गुस्से में बोल ही दिया।
-मुझे मालूम न था कि आप इतने जल्लाद हो! तुम्हें बहू नहीं नौकरानी की जरुरत थी।
-हाँ। थी ,तो क्या। तेरे बाप ने क्या दहेज दिया ?जो हम तेरे को बहु समझे।हमने पंद्रह लाख ऐसे ही नहीं खर्चे।पंकज ने कहते हुए कल्पा के गाल पर पूरे जोर से थप्पड़ रसीद कर दिया।
- तो तुमने वहाँ प्यार जताकर नाटक क्यों किया?मैं शोर मचाऊंगी। पुलिस के पास जाऊंगी।
- तू नौकरानी है । तेरे सारे कागज़ हमारे पास हैं। ज्यादा बोलेगी तो चोरी का आरोप लगा तुझे सालों साल के लिये जेल में बंद करवा देंगे। एक बात और अंग्रेजन हैंलिंग बारबरा मेरी बीबी है। समझी तू!
यह सुनकर कल्पा के पैरों के नीचे से मानो जम़ीन सरक गइ हो। उसका सिर फटने को हो रहा था। वह मन ही मन खौफ़ में बड़बड़ाने लगी कि कभी मौका मिला तो मैं इनको अवश्य सबक सिखाऊंगी। न जसने कब रोते-रोते उसकी आँख लग गई,उसे पता ही न चला। आँख खुली तो उसे अपने माँ- बाबा का ख्याल आया। उसने दृढ़ निश्चय किया कि मैं उनके सपनों को मरने नहीं दूंगी। मेरे ताड़केश्वर बाबा जरुर मेरी मदद करेंगे।
छह महीने कैसे रोते बिलखते बीत गये उसे कुछ ज्ञात न था । कल्पा का शरीर सूख कर कांटा हो गया था।
एक दिन उनके घर रात्रि भोज पर एक मेहमान आये । उन सबकी बातचित सुन कल्पा को पता चला कि मेहमान का नाम हरीश चंद्र कांडपाल है। उसने सही अंदाजा लगाया कि कांडपाल हैं तो जरुर उत्तराखण्ड से ही होंगे।
रात को मेहमान को खाना देते समय उसने चुपके से एक कागज मोड़कर कांडपाल के जेब में डाल दिया। जिसमें उसने अपनी पूरी दास्तान तो लिखी ही थी पर साथ ही अपने फूफा का फोन नम्बर व पता भी लिख दिया था। अंत में एक लाइन मोटे अक्षरों में रेखांकित करी "भैजी मिते ये नरक से बचाव प्लीज" ।
महीने भर बाद एक दिन अचानक कांडपाल जी के साथ अपने फूफा को घर के प्रवेश द्वार पर देख कर वो न जाने कितनी देर तक उन दोनों से लिपटकर रोती रही।
- "मिस्टर पंकज चुपचाप कल्पा का सब सामान पासपोर्ट , सर्टिफिकेट सहित बाहर ले आओ। वरना तुम जानते हो मैं पुलिस में हूँ और मैं कानूनन तुम्हारे विरुद्ध क्या कर सकता हूँ?"हरीश कांडपाल जी ने पंकज को धमकाकर कहा।
उस दिन पहली बार आजाद पंछी की तरह कल्पा ने खुली हवा में सांस ली। कांडपाल जी उन्हें अपने साथ अपने घर ही ले आए। कांडपाल जी ने कल्पा और उसके फूफा का भारत वापसी का पूरा प्रबंध अपने खर्चे पर कर दिया था लेकिन कल्पा ने भारत लौटने से यह सोचकर भारत लौटने को मना कर दिया कि समाज उसके साथ माँ-बाबा की खिल्ली भी उड़ायेगा जो वो लोग बर्दाश्त नहीं कर सकेंगे और जीते जी मर जायेंगर।
उसने वहीं रुकने का फैसला कर मेहनत करने की ठान ली।कांडपाल जी से उसकी सहायता कर नौकरी लगाने का निवेदन किया ।कल्पा के फूफा जी निराश हो वापस आ गए। कांडपाल जी ने कल्पा की एक पिता की तरह देखभाल करी। कांडपाल जी की मदद से पार्ट टाइम नौकरी कर कल्पा ने कुछ ही सालों में वहाँ अपनी उच्च शिक्षा पूरी करी ।कांडपाल जी ने उसकी मेहनत और लगन से खुश होकर पंकज से तलाक दिलाकर अपने डाक्टर बेटे डा०राघवेन्द्र से कल्पना की शादी कर दी।आज कल्पना न्यूयॉर्क के एक प्रतिष्ठित स्कूल में प्रबंध निदेशक है और अपने पति डाक्टर राघवेन्द्र व बेटे अनुज के साथ खुशी का जीवन बिता रही है। हाँ , दो साल में एक बार अपने बाबा -माँ को मिलने व ताड़केश्वर बाबा मंदिर के दर्शन करने निरंतर उत्तराखण्ड भारत आती रहती है।
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