ADD

भाग ९२ घपरोल

भाग ९२ 

सुबेर-सुबेर घपरोल


" आजो गढवालि चुटकला" " "

"सुबेर-सुबेर घपरोल"
श्रीमती जी," ब्यालि आठ बजि राति तुम कख गायब छ्याइ।"
श्रीमान जी," जखि रै होलु ।"
श्रीमती जी," धरमून तुम खुणि खाणो भिजवा छै. आन लाइन आर्डर कैरिक. हमखुणि देर हुणि छै. समधणि आणि नि दे रातो खाणो बगैर। कखि वीं पातरो घार त नि पौंचि गै छ्याइ।
श्रीमान जी," फून नि कैर सकदि छ्याइ. न यख टमाटर अर न आलु प्याज. मिन कपाऽल बणौन छै खाणो।"
श्रीमती जी," जू मिन सवाल पूछि. वांक जबाव नि दे. वू होटल वाल वापस चलि गै छ्याइ। जरुर वखि. . . .
श्रीमान जी," जैक दिमाग मा इक्कु भूत सवार हो वैक क्वी इलाज नि. बौ त घार मा हि नि छै।
श्रीमती जी ," फिर तुमन क्य खै। भाण्ड बि जुठ नि छन. वा घारम नि छै . तुमतैं कनकै पता. यांक मतलब जरुर वींक थाकुलि चाटणो गै ह्वैलि।
श्रीमान जी," अरे बिष्ट भुलो रिटायरमेंटो पार्टी छै ब्यालि. बौ बि वखि छै. बिष्ट जीन मि बुलाणो रावत जी भिजनी. म्यार यू फून हैंग व्है जांदु कबि कबि.
श्रीमती जी," तबि मि बोलू कि फून किलै नि लगणू. जाणि बुझि खराब करद व्हैल. बिजि रै व्हैल वीं पातरो गप्पों मा.
श्रीमान जी," त्यार कपाल. बौ त बात हि नि करणि तब बिटी जब बिटी गौं मा टाॅयलेट कू घपरोल ह्वै. . .
श्रीमती जी," ठिक्क व्है।पर मिन त कुछ नि ब्वाल . . . .
(घपरोल जारी)

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ