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भाग ९३ घपरोल

भाग ९३ 

सुबेर-सुबेर घपरोल



" आजो गढवालि चुटकला" " "

**सुबेर-सुबेर घपरोल**
श्रीमती जी," तुमार कंदुड़ त कमजोर ह्वै हि गैन पर आंख बि भितर चलि गैन क्य?
श्रीमान जी," त्यार गिच्च मा कबि मिठास बि आलि। सुबेर-सुबेर बरबराट। नि पिणा मिन तैरी स्या तरक्वाणि चा।"
श्रीमती जी," तरक्वाणि नि।. दूध मा हि पत्ती डाऽलि आज।
श्रीमान जी," आज क्य भैंस बिये यख।
श्रीमान जी," इनि समझो।द्वी किलो दूध पैलि छ्याइ फ्रिज मा अर तुम द्वी किलो हौर लेकि आइ ग्यो। पता नि कि ब्यालि मि अर धरमू समध्यूल हि रै ग्या छ्याइ. सबि दूध वखि बच्यूं।
श्रीमान जी," मितै सुपिन्या हुण छ्याइ क्य। पैलि नि बोली सकद छै तू।
श्रीमती जी,"देखि नि सकद छ्याइ?
श्रीमान जी," त्यार हि त मना कर्यूं कि अब ब्वारी ऐ ग्या त किचन मा नि झांकण।
श्रीमती जी," ये आदिम तैं कू समझौ? जब अकेला रैलि त स्या लदुड़ि नि फूकण तुमन। तब त जाणो हि च किचन मा।
श्रीमान जी," बिलकुल नि ज्याणा। चाहे बजार बिटी हि मंगाण प्वाड़ो। वैक बादो तेरी किच किच सुण म्यार बसो नि। निरभै सफ़ै वालि।"
श्रीमती जी," इन बोलो कि जनि मि बेटी या आपर भुलिक यख जांदु तुमते चट्ट वीं पातरो घार थालि चाटणो मौका मिल जांदु।
श्रीमान जी," फिर त्यार इशारा वीं बिचारी बौ तरफ च।. खैर ब्यालि ब्वारी किलै नि लै दगड़ मा?
श्रीमती जी," धरमूक जलमबार बि याद नि क्य? समधणिन ब्वाल कि वख हि मनाण धरमूक जलमबार यीं बार। त दस तारिख बाद हि आलि ब्वारी।
श्रीमान जी," मेरी समझ नि ओणि धरमू यख अर जलमबार मनै जालु वैक सुसराल मा।
श्रीमती जी," अब त लगणु दिमाग बि काम नि करदु। अरे हम सब तैं बुल्यायूं दस तारिख। तब ब्वारी दगड़ि आलि।कै होटल मा रखिं ब्वारिक पार्टी ।
श्रीमान जी," मिन त नि जाणो। मैं त नि पसंद होटलो खाणु। मि तैं त आलुक थिचौंणि अर भात मा हि मजा आंदि। वे होटलो मिट्ठू छत्तीस व्यंजन से मिते उल्टी आंदी।
श्रीमती जी," मि पता च . आपर द्वी चार दोस्तों लफण्डरो अर वीं पातर तैं इकट्ठा करिल यख म्यार घार.
श्रीमान जी," तू चाहे जू कुछ समझि अर जख बि जांदि पर मि कतै नि आण्या।
लेकिन मिन त कुछ नि ब्वाल. . .
(घपरोल जारी)

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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