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भाग १०३ घपरोल


भाग १०३  घपरोल

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" " "


"सुबेर-सुबेर घपरोल"
श्रीमान जी,"चलो,आज कम से कम चा त आच्छि मिल सुबेर-सुबेर. ब्यालिक यात्रा क सब थकान मिट ग्याइ।"
श्रीमती जी,'क्य मतबल. आज से पैलि तुमार निपणि नि ह्वाइ क्य. रोज सुबेर त स्टील गिलास भोरिक ते कपाल मा धरदु छ्याइ मि ।"
श्रीमान जी,"त्यार आंख त हमेशा गुस्सा मा असमान चड़ि जांदान. अरे आज ब्वारिक हथ क चा प्याइ। तू त सुदि कलच्वाणि सि पकड़े दिंद छ्याइ।"
श्रीमती जी"आज तक बत्तीस साल बिटी त मेरी बणै चा पैकि आणा छवा। क्य एक दिन भि ठिक नि लगी।"
श्रीमान जी," कनि पर। चा जू पुष्पा बौ बणादि ,हा हा अद्धा दूध अर अद्धा पाणि. वैक बात त कुछ हौर हि च। ब्वारीन भि आज उनि हि चा बणै।"
श्रीमती जी," वीं पातर कु नाम लियूं बगैर त तुमार चा भि हजम नि हुंद। गिच्ची मा कन आइ आंदि आंद। ब्वारीन मितै नि द्याइ चाय।"
श्रीमान जी," ब्वारी कनि बुलाणि छै पर तू त खर्राटा मारणि छै। त मिन हि मना कारा उठाणो। कतगा समझदार च ब्वारी । द्याखा सुबेर सुबेर आगरा प्रसिद्ध पंछी पैठा डब्बा पुष्पा बौ तैं दिणो भि चलि ग्याइ तैयार ह्वैक।"
श्रीमती जी," क्य! वू अंगूर वालु पैठा त म्यार अपरु पिताजी खुणि मंग्यायू छ्याइ। वीं पातरौ खुणि किले भ्याज तुमन।"
श्रीमान जी," मिन हि भ्याज कि वैन जल्दी खराब ह्वै जाण। पतानी तू कब जांदि मैत ।"
श्रीमती जी," ये कुपण्डि करा कु दिमाग खराब च. मिन त आपर गौं क टैक्सी वालु मा भिजण छ्याइ । जू मोहन नगर बिटी टैक्सी लेकि पौड़ी जांदु।"
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श्रीमान जी,"ले अब त बौ न चटके भि दे व्हालु पैठा चा दगड़। एक घण्टा व्है गै ब्वारी तै पुष्पा बौ घार जायां।"
श्रीमती जी,"अर वू दालमोठ नमकीन भि नजर नि आणु।"
श्रीमान जी,"अच्छा वू काजू भि छ्याइ जै मा। वू त मिन धैरी याल आपर आलमारी मा।"
श्रीमती जी ,"इने द्याव वै तैं. कम से कम म्यार पिताजी दालमोठ त बुकै ल्याल। जरुर वूं दर्योल्या खुणि धर्यां ह्वाल त्यार आपर खचड़ि खुणि।"
श्रीमान जी,'" वू त मिन राति खोलि भि याल। काजू भौत बढिया छन भै। समधणि सब चीज बढिया छांटी कन लाई। वू फिरोजाबादी सुनहरी चूड़ी डब्बा भि दे द्याइ मिन पुष्पा बौ तैं।
श्रीमती जी," नि पैरन पैलि वा पातर। सुनहरी चूड़ी पैकट म्यार आपर भुलि खुणि धर्यां छ्याइ।
तुमारी मति भरम ह्वै ग्याइ क्य!"
श्रीमान जी," अरे ब्वारी समझदार च।बल ताई जी के साथ के सब झगड़े मिटवा दूंगी। मैत बिटी आंद ब्वारी वै काम पर लगि ग्याइ।"
श्रीमती जी," म्यार कन जोग रै व्हाल। जै तैं मि कुछ सिखांद छौं वू हि वीं पातरो भकलोण मा ऐ जांद।
क्य कोरु, कख जौं अब।"
श्रीमान जी," जखि जांदि पर मिन त कुछ नि ब्वाल. . ।
(घपरोल जारी )

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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