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भाग १०५ घपरोल

 

भाग १०५  घपरोल

सुबेर-सुबेर घपरोल


" आजो गढवालि चुटकला" " "


"सुबेर-सुबेर घपरोल"
श्रीमती जी,"आज सूरज कख बिटी निकल। ब्वारी छह बजि नहे धुहे यी चिमटा ढुलक ,फूल माला किले इकठ्ठा करणि ह्वेलि।"
श्रीमान जी," आज महाशिवरात्रि च। हम सब्यूंक व्रत च. तब पूजा पाठ करणा व्हाल। भौत संस्कारी च भै।पर तेरि नहेणि नि हुणि आज।"
श्रीमती जी," ना तुम खुणि ह्वेलि। म्यार गैस मा पाणि धर्यूं गरम करण. म्यार बाथरूम कु गीजर खराब ह्वै ग्याइ।
श्रीमान जी," त्यार भि नखर्याट। लोग आज हरिद्वार मा कुंभ स्नान करण छन गंगा जीक ठण्डु पाणि मा अर तू गरम पाणि नहेणि। त्यार त पारा उनि गरम रौंद।
श्रीमती जी," जादा बकबास नि कारा. हे कन बिजोग प्वाड़। अफार वा पातर तुमारी पुष्पा बौ भि चमिक धमकी दरी पकड़िक इना हि आणि ब्वारी दगड़।
श्रीमान जी,"अरे हाँ. जय भोले। तेरी कृपा ह्वे ग्याइ आज।भौत खुशीक बात च। "
(पुष्पा बौ क प्रवेश)
श्रीमान जी," बौ सिमानी। प्रणाम. आज भौत दिन बाद दर्शन हुणा।"
पुष्पा बौ," चरंजिव तू ना. या ब्वारी रै हमेशा चिरंजीवी । आज ब्वारिक कीर्तन धर्यूं महाशिवरात्रि क. अर मेरी भजन मण्डली आणी च."
ब्वारी," मम्मी जी। आप भी फटाफट तैयार ह्वै जावा।
पुष्पा बौ," हे द्य्यूर. कतना बढिया गढवालि सीख गै ब्वारी तीन महीना मा।
श्रीमान जी,"हाँ बौ। धरमूक ब्वैन सिखै मोबाइल से पता ।
पुष्पा बौ," हैं भुलि। भौत सुंदर कार. अपणि बोली भाषा अर संस्कृति त ब्वारी तै सिखाण हि चयेंद।
श्रीमती जी," हाँ दीदी। मिन सिवा भि नि लगै आपतें।
पुष्पा बौ," लगा फटाफट। शायद अभि भि नराज छै मि से। चरंजीव रौ।
श्रीमती जी,"ना दी कुछ गलती मि से भि ह्वै ग्याइ। गुस्सा मा ना जणि क्य क्य बोलि मिन. मिते माफ कैरि द्याव दी।
पुष्पा बौ," माफी त मिते मांगण चयेंद भुलि। जू वूं बांझ पुंगणि पैथर आपस मा क्य क्य बकणा रौं. झगड़ा करणो रौं. जखि बणाणा अब तुमन टायलेट गौं मा।
श्रीमान जी," आज भोलेनाथ कु चमत्कार व्है गै जणि. जू सब्यूंक भ्रष्ट मति रस्ता मा ऐ गै। जय हो प्रभु।
पुष्पा बौ," अरे जय यीं ब्वारिक बोल। वीन समझैक सब्यूंक आंखि खोलि देन। चल भुलि सूजीक परशाद भि बणाण जल्दी। भजन टोली आण वालि ह्वैलि।
ब्वारी," बोलो भोले शंकर महाराज की जय।
श्रीमती जी," जय हो। अब मिन कखि नि जाण. मैत भि ना.
श्रीमान जी," ये बात. पर गौं त जाण च।
पुष्पा बौ," हाँ जी हाँ। सब दगड़ी जौला हर छह मैना मा दस पंद्रह दिनों खुणि.
ब्वारी," जी हम सब जौलाऽ. अर आज क बाद क्वी घपरोल ना सुबेर-सुबेर.
श्रीमती जी," सुणि याल तुमन।
श्रीमान जी," मि त हमेशा सुणदु रौंद. मिन त कुछ भि नि बोली आज तक।
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विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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