गज़ल
सर्या जिंदगि लड़िलि भिड़िलि तू
सर्या जिंदगि लड़िलि
भिड़िलि तू ।
गुरमुळ्या जोग तड़म तिड़िलि तू ।।
सैंणा बाटौं मा ठपगा
मरदा ग्यवां ।
हे जिंदगि झणि कखम रड़िलि तू ।।
हैंसणा रैन वो बसगळ्या
फूल सि ।
बल एक दिन कीच मा सड़िलि तू ।।
कांधिम भारतमाता उठईं
च तुमरि ।
भारे जैका झंडा फरड़ा गड़िलि तू ।।
धरतिम त फ्यफना घुर्से
भौत ह्वेगे ।
जून लिमाण को ठंग्रीम चड़िलि तू ।।
ल्वै पस्यौ चुवैक डाळि
सैंति पळिं ।
ढुंग्यौ लगैक फूल त नि
झड़िलि तू ।।
न्यूत्यां छन स्वीणौं
का सौदेर तुमरा ।
आज आख्यूं की चांदण तड़िलि तू ।।
धौ संदकै सौंजड़्यां
घौर अयां छन ।
द्यप्तौं का ठौ मा भ्यलि
फड़िलि तू ।।
गज़ल तुम खुणै ल्यखि
'पयाश' की ।
मर्जि तेरि पड़िलि या
नि पड़िलि तू ।।
©® पयाश पोखड़ा
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