क्या रखा है
क्या रखा है कम पीने में
ग़म तेरे साथ ऐसे जीने में
मोड़ मोड़ हो जब खुली मधुशाल
लड़खड़ना क़दमों का तो बनता है
घर घर जलता तेरी बूंदों से
पैमाने से जब शाम ढलता है
मैखाने और मकानों में
क्या हिस्सा तेरा क्या किस्सा मेरा है
ईंट चढ़ी सीमेंट दीवारों पर मन
शांत तब जब उसे गोबर से लिपा है
टूटना बिखरना यंहा क्यों अखरता है
चोट चोट से यंहा पर क्यों डरता है
नशा प्रेम का जब सर्वत्र फैला है
मधुशाल चल के तू क्योँ आया है
क्या रखा है ऐसे जीने में
ग़म तेरे साथ इस मय पीने में
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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