धूं धूं कैकि जळणी च
धूं धूं कैकि जळणी च
मेरी दंडी कंठी किलै कि ये बारी
कया हुनु कया हुलु जी
मेरो देबता तू मै थे बता
किलै की तू इन नारज व्हैगे
किलै तिन इन भस्मत मचै दे
रोँतैलो मेरो जंगलात बणो थे
अग्नि देबता को किलै भेंट चढ़े दे
ख़ाक हुनि लगिंच तेर ये डाली बोटी
दिन रति जळणी तेर ये स्वणी घाटी
मुका जिबों न तेरो कया च बिगाड़ी
किलै तिन ये भूमि मां जोलपोल मचे दे
ना ना कैर अब बुझै दे तिन जो रच्युं च
तेरो नौको उचांडो निकली मिन धरयुंचा
नारज ना व्है भांड्या मेरो वन देबता
मानी जा शांत व्हैजा अब ना जरा बी कैर अब देर
धूं धूं कैकि जळणी च ........
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार
बालकृष्ण डी ध्यानी
1 टिप्पणियाँ
ऊपर वाले ने बरस कर अरज सुन ली
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर